दमोह।
मिशन अस्पताल दमोह में संचालित कैथलैब में अनियमितताओं और मरीजों की मौत के मामले में दर्ज अपराध से जुड़े तीन आरोपियों की जमानत अर्जी शनिवार को द्वितीय अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश धर्मेश भट्ट की अदालत ने खारिज कर दी।
मामले में विजय लेम्बर्ट, डॉ. अजय लाल और इंदू लाल ने क्रमशः नियमित और अग्रिम जमानत के लिए आवेदन प्रस्तुत किए थे, जिन पर अदालत ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद निर्णय सुनाया।
विजय लेम्बर्ट, जो मिशन अस्पताल में जनरल मैनेजर के रूप में कार्यरत थे, की ओर से अधिवक्ता शशांक शेखर एवं अनुनय श्रीवास्तव ने यह तर्क दिया कि उन्हें झूठे आधारों पर प्रकरण में फँसाया गया है और उनका कैथलैब के संचालन या डॉ. नरेन्द्र जॉन केम की नियुक्ति से कोई संबंध नहीं था। अभियोजन पक्ष की ओर से अपर लोक अभियोजक गिरीश राठौर ने जमानत का विरोध किया।
केस डायरी के अनुसार, मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी दमोह के पत्र क्रमांक 3237 दिनांक 11 अप्रैल 2025 के आधार पर यह अपराध पंजीबद्ध किया गया था। शिकायत में कहा गया था कि अस्पताल में बिना वैध पंजीकरण के कार्डियोलॉजी विभाग संचालित किया जा रहा था तथा डॉ. अखिलेश दुबे के नाम पर झूठे दस्तावेज प्रस्तुत किए गए। साथ ही डॉ. नरेन्द्र जॉन केम द्वारा जनवरी से फरवरी 2025 के बीच कराई गई एंजियोग्राफी और एंजियोप्लास्टी के दौरान कुछ मरीजों की मौत के तथ्य सामने आए थे।
अदालत ने कहा कि इस स्तर पर अभियुक्त को जमानत देने से साक्ष्य प्रभावित होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। प्रकरण की गंभीरता को देखते हुए विजय लेम्बर्ट की नियमित जमानत अर्जी धारा 483 बीएनएसएस के तहत खारिज की गई।
इसी प्रकरण में सह-अभियुक्त डॉ. अजय लाल और उनकी पत्नी इंदू लाल की ओर से दायर द्वितीय अग्रिम जमानत आवेदन भी अदालत ने निरस्त कर दिए हैं।
अदालत ने कहा कि सह-अभियुक्त आशिमा न्यूटन को उच्च न्यायालय द्वारा अग्रिम जमानत का लाभ दिए जाने के बावजूद, इन दोनों आवेदकों की स्थिति भिन्न है और समानता के आधार पर राहत देना उचित नहीं होगा।
इस प्रकार तीनों आरोपियों की जमानत अर्जी एक साथ खारिज करते हुए न्यायालय ने आदेश की प्रतियां संबंधित थाना कोतवाली दमोह को भेजने के निर्देश दिए हैं।











